हुंडे की मांग ने ली एक और बेटी की जान – अंबाजोगाई की शुभांगी शिंदे की दर्दनाक आत्महत्या

अभी पुणे की वैष्णवी हगवणे की आत्महत्या से समाज उबरा भी नहीं था कि महाराष्ट्र के बीड ज़िले के अंबाजोगाई तालुका से एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। गीता गांव की 25 वर्षीय शुभांगी संतोष शिंदे ने ससुरालवालों के लगातार मानसिक उत्पीड़न से तंग आकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
इस घटना ने एक बार फिर समाज के सामने यह कटु सत्य रखा है कि हुंडा प्रथा, जो कानूनन अपराध है, आज भी कई घरों की खुशियों को निगल रही है।

क्या हुआ था शुभांगी के साथ?
शुभांगी शिंदे की शादी के समय उसके परिवार ने चार लाख रुपये का हुंडा ससुराल को दिया था। लेकिन वहां से चैन की जिंदगी नसीब नहीं हुई। शादी के बाद भी ससुरालवाले लगातार दो लाख रुपये और लाने का दबाव बनाते रहे। इस मांग को लेकर शुभांगी को प्रताड़ित किया जाने लगा।
उसके पति संतोष शिंदे और अन्य ससुरालवालों पर मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप लगाया गया है। मृतका के परिजनों के अनुसार, शुभांगी को धमकाया जाता था कि अगर वह पैसे नहीं लाई, तो उसे अंजाम भुगतना पड़ेगा।
आखिर कब तक बेटियां यूँही मरती रहेंगी?
शुभांगी का मृतदेह स्वामी रामानंद तीर्थ रुग्णालय, अंबाजोगाई में रखा गया है। परिवार ने साफ शब्दों में कहा है कि जब तक FIR दर्ज नहीं होती, वे शव को ताबे में नहीं लेंगे। यह सिर्फ शुभांगी की मौत नहीं है, यह एक पूरी व्यवस्था पर सवाल है।
हुंडे की यह कुप्रथा अब सिर्फ एक सामाजिक बुराई नहीं रही, यह एक जानलेवा बीमारी बन चुकी है जो कानून, चेतना और शिक्षा के बावजूद खत्म नहीं हो पा रही है।
समाज और कानून की भूमिका
हालांकि भारत में “दहेज निषेध अधिनियम, 1961” लागू है, परंतु ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। एक तरफ हम नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर बेटियों को पैसों के तले दबाकर उनकी जान ली जाती है।
पुलिस द्वारा इस मामले में जांच शुरू कर दी गई है, लेकिन सवाल ये है कि क्या दोषियों को सजा मिल पाएगी? क्या यह घटना वैष्णवी प्रकरण की तरह सिर्फ एक और केस बनकर रह जाएगी?